गिल्लू

गिल्लू

रचना: हिंदी भाषा शिक्षक मंच सिद्दापुर, शिरसी शैक्षिक जिला

एक अंक के प्रश्नोत्तर

उत्तर: कौआ अकेला ही ऐसा पक्षी है, जो एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित और अति अवमानित । इसलिए लेखिका ने कौए को विचित्र पक्षी कहा है।

उत्तर: गिलहरी का बच्चा गमले और दीवार के बीच में पड़ा था।

उत्तर : लेखिका ने गिल्लू के घावों पर पेन्सिलिन का मरहम लगाया।

उत्तर : वर्मा जी गिलहरी को गिल्लू नाम से बुलाती थीं।

उत्तर : गिलहरी का लघु गात लिफाफे के भीतर बंद रहता था।

उत्तर : गिलहरी का प्रिय खादय 'काजू' था।

उत्तर : लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई थीं इसलिए अस्पताल में रहना पड़ा था।

उत्तर : गिलहरी गर्मी के दिनों में लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाती थी।

उत्तर : गिलहरियों की जीवनावधि सामान्यतया दो वर्ष होती है।

उत्तर : गिलहरी की समाधि सोनजुही की लता के नीचे बनाई गई है।

दो अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: एक दिन सबेरे लेखिका ने बरामदे में आकर देखा कि दो कौए एक गमले के चारों ओर चोंचो से छुआ छुऔवल जैसा खेल खेल रहे थे। जब उन्होंने पास जाकर देखा तो उन्हें गमले और दीवार की संधि में एक गिलहरी का बच्चा निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पडा था।

उत्तर: गिल्लू गमले और दीवार की संधि में निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पडा थाउसे लेखिका हौले से उठाकर कमरे में लाई । रूई से रक्त पोंछकर घावों पर पेन्सिलिन का मरहम लगाया। कई घटों के उपचार के बाद मुँह में एक बूंद पानी डाला।

उत्तर : जब भी लेखिका लिखने बैठती, गिल्लू को उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने की तीव्र इच्छा होती थी इसलिए वह लेखिका के पैर तक आकर सर्र से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता जब तक लेखिका उसे पकड़ने नहीं उठती।

उत्तर : गिल्लू कभी-कभी वर्मा जी को चौंकाता रहता था। उन्हें चौंकने के लिए वह कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता था। कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में छिप जाता था।

उत्तर : गिल्लू ने लेखिका की गैरहाज़री में दिन बहुत दुःख में बिताये उन दिनों जब भी लेखिका के कमरे का दरवाजा खोला जाता, गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और किसी दूसरे को कमरे में देखकर फिर उसी तेजी से आकर अपने घोसले में जा बैठता था। वह लेखिका की याद में अपना प्रिय खाद्य काजू को बहुत कम खाता था।

चार अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: गिल्लू अपने झूले को स्वयं हिलाकर झूलता रहता था और अपने काँच के मनकों-सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर कुछ न कुछ देखता समझता रहता था। जब भी लेखिका लिखने बैठती, उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उनके पैर तक आकर सर्र से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता। कभी-कभी लेखिका गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में डाल देती थी तब वह लिफ़ाफ़े से बाहर झांकता हुआ घंटों मेज पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर अपनी चमकीली आँखों से लेखिका का कार्यकलाप देखता रहता था। भूख लगने पर चिक चिक करके सूचना देता था और काजू या बिस्कुट मिल जाने पर लिफ़ाफ़े से बाहरवाले पंजों से पकड़ कर उसे कुतरता रहता था। जब भी गिल्लू को बाहर घूमने के लिए छोड़ा जाता, वह बाहर चला जाता और दिन भर अन्य गिलहरियों के साथ हर डाल पर उछलता कूदता हुआ खेलता था और ठीक 4:00 बजे वापस आकर अपने झूले में झूलता था। कभी-कभी लेखिका को चौंकाने के लिए वह फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में छिप जाता ।लेखिका के खाना खाते वक्त गिल्लू सीधा आकर थाली में ही बैठ जाता था ।जब लेखिका को आहत होकर कुछ दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा, तब गिल्लू बहुत दुखी था। उन दिनों उसने अपना प्रिय खाद्य काजू को बहुत कम खाता था । लेखिका की अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें पंजों से लेखिका के सिर और बालों को हौले हौले सहलाता रहता था। गर्मियों के दिनों में वह लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाता था ताकि उसे ठंडक मिल सके।इस तरह गिल्लू का कार्य-कलाप था।

उत्तर : जब भी लेखिका खाना खाने के लिए मेज पर बैठ जाती, गिल्लू खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार बरामदा पार करके मेज पर आकर पहुँच जाता था और सीधा लेखिका की थाली में ही बैठ जाना चाहता था ।लेखिका ने बड़ी कठिनाई से उसे थाली के पास बैठना सिखाया जहाँ बैठकर वह उनकी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफाई से खाता था।

उत्तर: गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्षों से अधिक नहीं होती है। गिल्लू की जीवन-यात्रा का अंत भी आ ही गया। अपने अंतिम दिनों में उसने न कुछ खाया न बाहर गया।आखिरी दिन उसके पंजे ठंडे हो रहे थे।लेखिका ने जागकर हीटर जलाकर उसे उष्णता देने का प्रयास किया। लेकिन सुबह की प्रथम किरण के साथ ही गिल्लू चिर निद्रा में सो गया।

उत्तर: लेखिका महादेवी वर्मा जी को पशु पक्षियों से बहुत ही लगाव था और पशु-पक्षी को भी लेखिका से उतना ही प्यार था। एक दिन लेखिका ने गमले और दीवार की संधि में छिपे एक घायल गिलहरी के बच्चे को देखा। उसे हौले से उठाकर कमरे में लाई और पेन्सिलिन का मरहम लगाया ।उसे बचाने के लिए कई घंटों तक उपचार किय। स्वस्थ होने के बाद उसे रहने के लिए फूल रखने की एक हल्की डलिया में रुई बिछाकर एक झूला तैयार किया।वर्मा जी गिल्लू को अपनी थाली से खाना खाने देती थीं। दो वर्षों तक वर्मा जी ने गिल्लू की सेवा प्यार से की। अपने घर के सदस्य के जैसे गिल्लू को पाला गिल्लू के अंतिम दिन में हीटर जलाकर उसे उष्णता देकर उसे बचाने की कोशिश की ।जब गिल्लू की मृत्यु हो गई उसकी समाधि सोनजुही की लता के नीचे ही बनाई गई। क्योंकि वह लता गिल्लू को अधिक प्रिय थी और किसी वासंती के दिन, जूही के पीताभ छोटे फूल के रूप में गिल्लू के खिल जाने का विश्वास लेखिका को संतोष देता है।