व्याकरण विभाग

प्रेरणार्थक क्रिया

प्रेरणार्थक क्रिया

क्रिया का वह रूप जिससे कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं ।

१) मूल क्रिया के अंत में ‘आना’ लगाकर प्रथम प्रेरणार्थक ‘वाना’ लगाकर द्वितीय प्रेरणार्थक रूप बना सकते हैं ।

धातु क्रियाप्रथम प्रेरणार्थक (आना) द्वितीय प्रेरणार्थक (वाना)
चलचलनाचलानाचलवाना
करकरनााकरानााकरवानाा
पढ पढना पढाना पढवाना
ठहर ठहरना ठहराना ठहरवाना
पहनपहनना पहनाना पहनवाना
बन बनना बनाना बनवाना
लग लगना लगाना लगवाना
ओढ़ ओढ़ना ओढ़ाना ओढ़वाना
दौड दौडना दौडाना दौडवाना
लौट लौटना लौटाना लौटवाना
चिपक चिपकना चिपकाना चिपकवाना
लिख लिखना लिखाना लिखवाना
मिल मिलना मिलाना मिलवाना
गिर गिरना गिराना गिरवाना
उठ उठना उठाना उठवाना
सुन सुनना सुनाना सुनवाना
उड़ उड़ना उडाना उड़वाना
हँस हँसना हँसाना हँसवाना
उतर उतरना उतराना उतरवाना

२) धातु के आरंभ में दीर्घ स्वर हो तो उसे ह्रस्व में बदलकर प्रेरणार्थक रूप बना सकते हैं ।

धातु क्रियाप्रथम प्रेरणार्थक द्वितीय प्रेरणार्थक
देख देखना दिखाना दिखवाना
भेज भेजना भिजाना भिजवाना
सीख सीखना सिखाना सिखवाना
जीत जीतना जिताना जितवाना
बैठ बैठना बिठाना बिठवाना
बाँट बाँटना बँटाना बँटवाना
माँझ माँझना मँझाना मँझवाना
जाँच जाँचना जँचाना जँचवाना
जाग जागना जगाना जगवाना
माँग माँगना मँगाना मँगवाना

३) धातु अगर एक ही अक्षर का हो और दीर्घ हो तो उसे ह्रस्व बनाकर ‘लाना’ जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक और ‘लवाना’ जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक होता है।

धातु क्रियाप्रथम प्रेरणार्थक द्वितीय प्रेरणार्थक
सो सोना सुलाना सुलवाना
रो रोना रुलाना रुलवाना
धो धोना धुलाना धुलवाना
पी पीना पिलाना पिलवाना
सी सीना सिलाना सिलवाना
दे देना दिलाना दिलवाना