महिला की साहसगाथा

महिला की साहसगाथा

ರಚನೆ: हिंदी भाषा शिक्षक मंच सिद्दापुर, शिरसी शैक्षिक जिला

एक अंक के प्रश्नोत्तर

उत्तर: बिछेन्द्री पाल को एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त हुआ है।

उत्तर: बिछेन्द्री की माता का नाम 'हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशनपाल सिंह ' था।

उत्तर : बिछेन्द्री ने निश्चय किया कि उनके भाई की तरह पर्वतारोहण करेगी।

उत्तर : बिछेन्द्री ने गंगोत्री ग्लेशियर पर चढ़ाई की।

उत्तर : सन 1983 में दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों ' का सम्मेलन हुआ था।

उत्तर : एवरेस्ट पर भारत का झंडा फहराते समय पाल के साथ पर्वतारोही अंग दोरजी थे।

उत्तर : कर्नल का नाम खुल्लर' था ।

उत्तर : ल्हा्टू नायलॉन की रस्सी लाया था ।

उत्तर : बिछेन्द्री ने थैले से 'हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ ' का चित्र निकाला ।

उत्तर : कर्नल ने बधाई देते हुए बिछेन्द्री से कहा कि’ ‘देश को तुम पर गर्व है।

उत्तर : मेजर का नाम 'कुमार' था।

उत्तर : बिछेन्द्री को भारतीय पर्वतारोहण संघ ने प्रतिष्ठित ‘स्वर्ण पदक ' देकर सम्मान किया।

दो अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: बिछेन्द्री का जन्म एक साधारण भारतीय परिवार में हुआ था। उनके माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशनपाल सिंह था । वे अपने माता पिता के पाँच संतानों में तीसरी संतान थी। बिछेन्द्री के बड़े भाई को पहाड़ों पर जाना अच्छा लगता था। इसी जज़्बे से बिछेन्द्री पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया ।

उत्तर: बिछेन्द्री का बचपन बहुत मुश्किल में बीता । बचपन में बिछेन्द्री को रोज़ 5 किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाना पड़ता था । सिलाई का काम सीख लिया और सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगी। इसी तरह उन्होंने संस्कृत में एम.ए तथा बी.एड तक की शिक्षा प्राप्त की।

उत्तर : बिछेन्द्री ने पर्वतारोहण के लिए 'नायलॉन की रस्सी, ऑक्सीजन और फावड़े' का उपयोग किया था।

उत्तर : एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर बिछेन्द्री ने फावड़े से पहले बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया । इसके बाद अपने घुटनों के बल बैठी । बर्फ पर अपने माथे को लगाकर उन्होंने सागरमाथे के ताज का चुंबन किया । बिना उठे ही हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ का चित्र निकालकर लाल कपड़े में लपेटा और छोटी – सी पूजा करके इनको बर्फ में दबा दिया ।

चार अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: बिछेंद्री ने बड़े भाई से प्रेरित होकर पर्वतारोहण करना चाहा। इसलिए पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। वे बचपन में रोज़ पाँच किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाती थी। बाद में पर्वतारोहण-प्रशिक्षण के दौरान उनका कठोर परिश्रम बहुत काम आया। सिलाई का काम सीखकर सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगीं। पढ़ाई के साथ-साथ बिछेंद्री ने पहाड़ पर चढ़ने के अपने लक्ष्य को भी हमेशा अपने सामने रखा। इसी दौरान उन्होंने ने 'कालानाग' पर्वत की चढ़ाई की। सन् 1982 में उन्होंने 'गंगोत्री ग्लेशियर'(6672 मी) तथा 'रूड गेरो' (5819 मी) की चढ़ाई की जिससे उनमें आत्मविश्वास और बढ़ा।अगस्त 1983 में जब दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों का सम्मेलन हुआ तब वे पहली बार तेनजिंग नोर्गे (एवरेस्ट पर चढ़नेवाले पहले पुरुष) तथा जुंके ताबी (एवरेस्ट पर चढ़नेवाली पहली महिला) से मिलीं।

उत्तर: एवरेस्ट चढते समय बिछेन्द्री के साथ पर्वतारोही अंग दोरजी भी थे। उस दिन कर्नल खुल्लर ने साउथ कोल तक की चढ़ाई के लिए तीन शिखर दलों के दो समूह बनाया था। वे सुबह चार बजे उठी, बर्फ पिघलाई और चाय बनाई। कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हल्का नाश्ता करने के पश्चात् वे लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। सुबह 6:20 पर जब अंग दोरजी और वे साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और ठंड बहुत अधिक थी। उन्होने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। बर्फ काटने के लिए फावड़े का इस्तेमाल किया।दो घंटे से कम समय में ही वे शिखर कैंप पर पहुँच गए। थोड़ी चाय पीने के बाद उन्होने पुनः चढ़ाई शुरू कर दी। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था इसलिए अंग दोरजी और वे रस्सी के सहारे चढ़े, । उनके रेगुलेटर पर जैसे ही ल्हाटू ने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई उन्हें कठिन चढ़ाई आसान लगने लगी।दक्षिणी शिखर पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ उड़ा रहे थे ।23 मई, 1984 के दिन दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर वे एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी।

उत्तर : प्रस्तुत पाठ से यह संदेश मिलता है कि महिलाएँ भी साहस प्रदर्शन में पुरुषों से कुछ कम नहीं हैं। बिछेंद्री पाल इस विचार का एक निदर्शन है। बिछेद्री पाल को एवरेस्ट की चोटी पर चढ़नेवाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। - साहस गुण, दृढ़ निश्चय, अथक परिश्रम, मुसीबतों का सामना करना इत्यादि आदर्श गुण सीख सकते हैं । इसके साथ हिमालय की ऊँची चोटियों की जानकारी भी प्राप्त करते हैं । इस पाठ से जान सकते हैं कि मेहनत का फल अच्छा होता है।