सत्य की महिमा
ರಚನೆ: हिंदी भाषा शिक्षक मंच सिद्दापुर, शिरसी शैक्षिक जिला
दो अंकवाले प्रश्नोत्तर
उत्तर: 'सत्य' बहुत भोला-भाला, बहुत ही सीधा-सादा, जो कुछअपनी आँखों से देखा, बिना नमक मिर्च लगाए बोल दिया यही सत्य है । सत्य दृष्टि का प्रतिबिंब है, ज्ञान की प्रतिलिपि है , आत्मा की वाणी है।
उत्तर: झूठ बोलने वाले अपने एक झूठ साबित करने के लिए हज़ारों झूठ बोलने पड़ते हैं और कहीं पोल खुली तो मुँह काला करना पड़ता है, अपमानित होना पड़ता है।
उत्तर : कभी-कभी झूठ बोल देने से कुछ क्षणिक लाभ अवश्य होता है और इससे अधिक हानी ही होती है । क्षणिक लाभ विकास के मार्ग के लिए बाधा बन जाता है। व्यक्तित्व कुंठित होता है । झूठ बोलनेवालों से लोगों का विश्वास उठ जाता है । उनकी उन्नति के द्वार बंद हो जाते है।
उत्तर : किसी को परेशान करने, दुखी करने के उद्देश्य से सत्य बोलना नहीं चाहिए । काने को · काना' कहकर पुकारना या लंगडे को उस जैसी नकल कर दिखाना सच बोलना नहीं होता यह तो सिर्फ छेडना हुआ ।इस बात को शास्त्र में समझाया गया है।
उत्तर : संसार में जितने व्यक्ति हुए , सबने सत्य का सहारा लिया है । राजा हरिश्चन्द्र की सत्य निष्ठा विश्वविख्यात है । उन्हें सत्य के मार्ग पर चलते अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी कीर्ति आज भी सूरज की रोशनी से कम प्रकाशमान नहीं है । राजा दशरथ ने सत्य वचन निभाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
उत्तर : महात्मा गाँधि का कथन है कि, सत्य एक विशाल वृक्ष है । उसका जितना आदर किया जाता है,उतने ही फल उसमें लगते है । उनका अंत नहीं होता । सत्य बोलने की आदत बचपन से ही डालनी चाहिए।